काल गांवे जाये के बा,बाकिर ई समझ में नईखे आवत की एतना बरिस बाद उँहा के लोग हमरा के पहिचानी की ना, बियाह सादी, मौका पर त आउरो. रिश्तेदार लोग भीआइल होई, सबका बीच में आपन शहरीपन, रहन सहन के आदत छोड़ के, ठेठ गंवई अंदाज में, खाली ओ गाँव के ''छोटका बबुआ'' बन के जिए खातिर हमार मन तरसत रहे
आज़ चचेरा भाई अजय के लईका के बियाह में ई मौका मिलल, त हम टाल ना पंवली ,संजोग से टिकटों भी मिल गईल रहे, मन में एगो उमंग, हुलास के जैसे नदी उमडत रहे. हमरा साथे दुनो बड़का भैया ओउर भौजी लोग भी जातरहली. .....
घर में अइसन तैयारी होखे लागल जैसे हम जंगल में जा रहल बानीं.
प्रीति के बार बार मना करला के बावजूद न जाने का का नाश्ता में बना
दिहली,..निमकी,ठेकुआ,भूंजल चिउड़ा, बिस्कुट,अब के समझाई की हमार गाँव अब उ पुरनका गाँव ना रह गइल, बहुत कुछ बदल गइल बा, सोच, विचार ओउर.शायद. लोग के रहन सहन के तौर तरीक़ा भी...
अरे उ हमार गाँव ह, हमार जन्मभूमि, हमार माई जइसनलेकिन माई के नांव मन में आवते. आँख से गंगा जमुना बहे लागल. मन हिल़क हिल़कके रोये खातिर बैचैन हो गइल......
का भइल?.. एतना उदास ओउर निरीह बन के बियाह शादी में जाइब? ''पीछे से प्रीति टोक दिहली.
'ना ना, माई के इयाद आ गइल ..ओकरा आखिरी समय में भी ना मिललीं.. ई नौकरी खातिर.माई के ममता ,नेह छोह ..सब भुला देवे के पडल ..माई बीमार रहे, आ हमार
नया नौकरी मेंतुरंत ज्वाइन करल जरुरी रहे,बस हम जबले लौट के अईलीं,.. माई ना मिलल. ..आज उ सब मजबूरी याद आ रहल बा.ओ घर के कोना कोना में माई के याद बिखरल बा प्रीती, की समेटेले ना समेटाई ''..
आज रात के गाडी से जाए खातिर तैयारी शुरू हो गईल.नयकी पतोह के प्रीती साडी श्रृंगार केसमान चूड़ी, सिंदूर आ चांदी के पायल रख के उपहार तैयार कर देली,हमरा के नाश्ता में ठेकुआ चिउरा,बादामके नमकीन ,बेसन के लड्डू डिब्बा में रखके दिहली. जैसे परदेश से घरे लौटला के ख़ुशी होत रहे,वैसने ख़ुशी आज हमरा
दिल दिमाग में छाइल रहे.जैसे आजो माई हमार इन्तजार करत होई, बाबूजी सिवान मेंखडा होके राह देखत होईन्हें , आ घर के चुल्हा पर माई गरम भात पकावत होई की दू दिन से सफ़र में चलल छोटका बबुआ के भूख लागल होई!
हम जानतानीं क़ि आज अब कुछ ना शेष रह गइल, न माई के इंतज़ार, न बाबूजीके दुलार, न अंगना के आम गाछ में फ़रल मिठुआ आम के स्वाद ..दिन, बरिस, महीना ,बीतत, समय के धार संगे सब बह गइल. ..बाकिर जे शेष बांच गइल बा ,ओही धरोहर के समेट के ले आइब ,माई के सून अंगना में खडा होके तुलसी मैया के गीत गावत, माथ पर अंचरा राख के जोत जलावत, माई के मधुर मूर्ति अपना कल्पना में सहेज के ले आइब.
...जगदम्बा जी के मंदिर में दिया जला के माई जइसन घर परिवार ,गाँव के सुख़
मांगब . .....आज एतना दिन के बाद गाँव के धरती पर पाँव रखते ..हर
गली,मोड़,सड़क,ग्राम देवता, सबसे माफ़ी मांगब क़ि हम रोजी रोटी के मजबूरी में
गाँव के भुला जरुर गईलीं पर अपना जिनगी ओउर मन के हर धड़कन में अपना गाँव के बसवले बानीं. ट्रेन में अच्छा से जगह मिल गइल.प्रीती बार बार समझावत रहली''दवाई समय पर खालेब, तेल, मसाला मत खाइब,पहुंचते फोन करब,'' बाकिर हमरा के कुछ न सुनात रहे.
आ ट्रेन चल पडल.सामने वाला बर्थ पर एगो और परिवार अपना गांवे जात रहे, मौसम के हालचाल पूछत ,गाँव घर के माहौल पर आके बात होखे लागल .उ बातचीत से मालुम भइल क़ि आज कल गाँव के युवा पीढी के बीच एगो नया रोजगार चल निकलल बा, ..जे लोग लंबा समय से ,रोजी रोटी खातिर गाँव छोड़ ,शहर भा परदेश चल गइल बा, उनकर घर त ढहत, भहरात जरजर अवस्था में पहुँच गइल बा, देख भाल के अभावे आ समय समय पर गाँव ना पहुँच पावे के मजबूरी में उ घर ओउने पौने दाम में बिक रहल बा, नवजवानन के चांदी बा.
हमार कान खडा हो गइल.उ अनजान मित्र आज जैसे हमार शुभचिंतक बन के आइल रहे.
'गाँव के बाकी लोग विरोध काहें ना कइल ?'
... ...
(क्रमशः )... (to be continued!)
- अपना माटी से दूर भईला के गम का होला ई कहानी में देखे के मिली
- जे परदेश से अपना गांव न लौटेला, ओकर पुस्तैनी परम्परा कइसे ख़त्म हो जाला?
लेखक: पद्मा मिश्रा
अपडेट: 22 जुलाई 2023, 23:27
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