बड़े लोगों की 'मदद' - Bade Logo ki Madad - Short Story
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बड़े लोगों की 'मदद' - Bade Logo ki Madad - Short Story

शाम को टीवी पर दिखाया कि 2000 का नोट बंद हो जाएगा...

सीमा अलमारी में 2000 के एक पुराने नोट को देखती ही जा रही थी... शायद यह वही नोट है, जिसे मैंने अपने बचत की गुल्लक में रख दिया था. काश कि यह रामावती को दे देती तो उसके काम आ जाता, आज ये किसी काम का नहीं...

सुधीर गौतम बोल पड़े:- कौन! सा! खजाना हाथ लगा है जिसे बार-बार देखती और छुपाती रहती हो...

इतना सुनते ही सीमा की आंखें छलक आई....

2 साल पुरानी रामावती की बात याद आ गई।

रामावती कई घरों में झाड़ू पोछा का काम किया करती, तो अच्छे पैसे मिल जाते थे। पूरे परिवार का गुजारा उसी कमाई से ही चलता था। कई घरों में काम करते, कभी कभी समय की कमी के कारण बड़ी भागदौड़ करनी पड़ती. उस दिन बारिश के कारण सड़क पर जलजमाव हो गया था... रामावती गौतम जी के घर से खाना बनाकर, शुक्ला जी के घर जा रही थी... भाग दौड़ में सड़क पर उसका पैर फिसल गया, और पैर की हड्डी में चोट आई।

प्लास्टर लगने के कारण रामावती का काम भी छूट गया ।

गुजारा चलाना मुश्किल हो गया था... बारिश के कारण इधर-उधर जलजमाव के कारण, रामावती के बच्चे को मलेरिया हो गया था। इलाज के पैसे कहां से लाए बिचारी?

गौतम जी के घर जाकर मालकिन से कहने लगी - भाभी कुछ मदद कर दीजिए! बेटे की तबीयत खराब है.

मिसेज गौतम कहने लगीं - अभी तो तुम्हारा पिछला उधार ही चुकता नहीं हुआ, और ऊपर से तुमने काम भी छोड़ दिया है... उधार कहां से दें। 

कुछ सोचते हुए मिसेज गौतम बोलीं - अभी साहब भी नहीं हैं, जाओ शाम को आना। वह घर चली गई कि शायद शाम को साहब के आने पर पैसे मिल जाएंगे।

शाम को रामावती फिर आई।

मेम साहब "आपने कहा था शाम को पैसे देंगी"!

मिसेज गौतम बोली - हां कहा तो था कि शाम को आना... अब आ गई है तो थोड़ा काम कर दे। बहुत सारे कपड़े पड़े हैं, इन्हें धो दे, इसके बाद साहब के लिए चाय बना देना ।

रामावती पर मेरे पास इतना समय नहीं है, अगर मैं यहां काम करूंगी तो मेरे बच्चे को कौन देखेगा।

गौतम बोली पैसे चाहिए तो थोड़ा कुछ तो करना ही पड़ेगा! थोड़ी ही देर का तो काम है, और मैं तुझे उधार नहीं दे रही हूं। मेरा काम कर देना, और वह पैसे मुझे मत लौटाना।

पैसे मिलने और कोई रास्ता कभी नजर नहीं आ रहा था, इसलिए रामावती कपड़े धोने में लग गई... लगभग 15-20 कपड़े धोते दो घंटा लग गया । सारा काम करके रमा ने मिसेज गौतम को आवाज लगाई ।

भाभी सब काम हो गया अब मैं जा रही हूं।

ठीक है यह ले तेरे पैसे , मालकिन को धन्यवाद कह रामावती तेज कदमों से अपने घर की तरफ भागी । उधर रामवती का लड़का बुखार से तड़प रहा था ...

उसके पास मदद के लिए कोई नहीं था, एक शराबी पिता जो नशे में धुत, जिसे होश भी नहीं था। रामावती ई रिक्शा लेकर घर पहुंची कि बेटे को अस्पताल लेकर जाएगी। घर पहुंचने से पहले उसके बेटे ने दम तोड़ दिया। रमावती बेटे को गोंद में लेकर रोने लगी... शायद उसे आने में देर हो गई थी। गुस्से में दोबारा वह मिसेज गौतम के घर गई, भाभी अपने पैसे रख लीजिए... अब यह मेरे किसी काम के नहीं। अब बहुत देर हो चुकी है। 

आप बड़े लोग बिना काम के किसी की मदद नहीं करते!
अगर आपने समय से मुझे वह पैसे दे दिए होते, तो शायद बेटे की जान बच जाती... देर पर आई मदद की कोई कीमत नहीं होती।

अब जब बेटा ही नहीं रहा तो यह पैसे लेकर मैं क्या करूंगी... यह 2000 का नोट अब मेरे लिए ₹2 के बराबर है मिसेस गौतम को पैसे थमा कर रुआंधी आंखों से रमावती वापस चली आई।

लेखक: सरिता सिंह
अपडेट: 22 जुलाई 2023, 22:20

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