बदलाव (Badlav- Bhojpuri Short Film Story)
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बदलाव (Badlav- Bhojpuri Short Film Story)

दीदी अस्पताल से घर आ गइली ...चार गो कंधा पर सवार ..घर के दहलीज से कमरा तक क सफर भारी  हो रहल रहे, कमरा क सन्नाटा अचानक औरतन बच्चन के रोआई से गूंज उठल 

आज घर के मलकिन घर के लछमी चल गइली,पर अपना पीछे याद के एगो लंबा सफर छोड गइल। घर अंगना में बितावल पचास बरिस के लंबा संग साथ,गिरहस्थी के।सुख दुख,हंसी खुशी के एक एक पल के जियत अपनावत,जिनगी के आखिरी पडाव तक कसफर पूरा करके चल गइली,

उनकर  शांत मुख ,के भाषा जइसे कहत रहे *ल संभाल अब आपन घर दुआर,हम त जात बानी

बिटिया सब बिलखत रहें,बहु लोग रोवत रहें, हम त ना थकनी एअम्मा जी,,राउर सेवा करत,पर रउआ कहंवा चल गइनीं, बाकिर के सुनत? आउर के झिडकत?

ई बेमतलब के सोरगुल काहें मचवले बाडू रंभा?

अचानक रंभा सहम के चुप हो गइली,अबहीं सब तइयारी तोहरे करे के बा,

पर का करे, कइसे करे? के बताई? अब तक त अम्मांजी ही सब संभालत रहली

घर,खानदान के सब नीयम, कायदा संस्कार सभे उनकरा मुंहजबानी याद रहल,  बाकिर अब का? सब केहू अचकचाइल खडा बा, सभ चाचा चाची लोग, बुआ जी,बेटी सब, सबकर आपन आपन राय आ अनुभव बा, के कर सुनल जाय आउर के कर ना 

आरे रंभा! घीव ले आव आउर चंदनो के लोप करे के पडी, रँभा उठते रहली कि बुआ जी टोक दिहली, फूल आउर माया साडी के बोल देले बाडू न विपिन के?

 रंभा मूडी हिलावत चल गइली,

''दीदी कई बरिस से बीमार रहली ,,, जीजाजी के गइला के बाद त आउरो कमजोरी हो गइल रहली ,किडनी ,हार्ट ,लीवर से जुडल कवन बीमारी रहे जे उनका पास ना रहे ,बाकिर मन से आपन हौसला ना टूटे दिल्ली,,सबके संभाल लिहली, बेटा,बहू, घर गिरहस्थी,लेन देन, संस्कार परंपरा सब

कौनो पडोसिन टोकली, आरे दीदी के सिंगार करे के पड़ी,

छोटकी बहू मीनू अचकचा गयली, ना.. ना मां तो विधवा रहली, सिंगार ना होई

हाथ पर चंदन लपेटते नाउन कहते रहे कि, लाल चूड़ी ले आव, कांच वाली, ए बार बड़की बहू रंभा कड़ा विरोध कइली, ना ऊ सब ना होई 

बिटियन के दर्द आ पीडा कुछ दोसरे रहे, मां के गयला के बाद पैदा हो गइल असुरक्षा क डर उनके सतावे लागल, जब तब मां ऊ लोग के मदद कर देत रहली

पर अब भाभी केतना साथ दीहे ,उनकर आंसू में हजार गो शंका छिपल रहे,आउर डर भी

बड़का दामाद आ बेटी संध्या ई जताने में कौनो कमी ना छोडल लोग कि, मां से सबसे ज्यादा लगाव उनके रहे, उहे लोग ज्यादा सेवा करले बा,केहू सिर मुंडवा लिहलस त केहू बढ़ चढ़ के सब बेवस्था संभाले लागल, सब दिखावा आ प्रदर्शन खातिर, आपन आपन संवेदना दांव पर लगा दिहल लोग, फोटोग्राफर के आगे, दीदी से सट के फोटो खिंचवावे खातिर होड़ लग गईल,रहे। 

आउर हम अपना आखि से बहत अंसुवन के रोके में लाचार होके सोचत रहली कि दुख संक्रामक होला ई तो सुनले रहली पर दुख एतना निरमम आउर लाचार भी होला कि खाली एगो दिखावा बन के रह जाये?, ई आज हम देखत बानी 

हमके दीदी बहुत याद पडली, अगर आज उ जिंदा रहती त बिना कौनो लाग लपेट के,न ए पार देखती ,न ओ पार,बीच के रस्ता निकाल लेती ,जौन जैसे बा ओइसने रहें द

हमार आंख भर आईल,औरतन के किच पिच जारी रहे,,तबेले विपिन के दोस्त लोग मोर्चा संभाल लिहलन ,माथे पर चंदन अबीर सजा के फूल से सिंगार करके साध्वी बनल दीदी के लेके सब लोग चल गईल लोग,औरतन के रोआई शांत हो गईल  रहे,बाकी बचल समान के हटा दिहल गईल , घर धुलल,अब नहाए के बारी रहे,रंभा बुआ जी से पूछली,*बुआ जी आज तक सब साथहि नहाई न?

पता ना बहुरिया हमरा के त इयाद ना आवत बा, लेकिन भैया के समय त,बुआ जी के बात पूरा होंखे के पहिलहई बगल वाली चाची बोली पडली, हां हां शर्मा जी के समय में सब घरहि जाके नहैले रहे, रंभा मंझली सास की ओर देखली,

'हमरो के याद ना आवत ह रे'

तब छोटकी बहू एगो उपाय निकली, अगर साथहि नहाए के बाद तो ईहवा भी दूं लोटा पानी देह पर डाल के अपना अपना घरे जाकै नहा लिहल जाय 

अइसहीं करल गयल,काहे कि बहस करला से कौनो फायदा ना रहे,,जौन दीदी जीवन भर नियम कायदा परंपरा के ढोअत रह गयली आज उनही के आखिरी कर्मकांड में जैसे तैसे परंपरा निभावल जात रहे 

... ...

    (क्रमशः )... (to be continued!)

    1. सास के मौत के बाद टूट रहल परम्परा के बहु लोग कैसी बचायी?
    2. का परम्परा में बदलाव के स्वीकार कईल जा सकेला?  

    लेखक: पद्मा मिश्रा 
    अपडेट: 22 जुलाई 2023, 22:52

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    Script Title & Keywords: Badlav- Bhojpuri Short Film Story, 

    Credits-Section: alamy.com


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