मोहन बाबु (७०) एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। मोहल्ले के सभी लोग उन्हें मान सम्मान देते हैं। पार्वती (६५ - मोहन बाबु की पत्नी) एक कुशल गृहिणि हैं। वह अपने पति की सेवा करना ही भगवान की पूजा समझती हैं। अजीत (३०), अमर (२८), अमित (२५) - (तीनों मोहन बाबु के पुत्र) अपने काॅलेज के टाॅप छात्रों में गिने जाते हैं।
अनिता (२५), अमृता (२२), अंकिता (२०) (शहर के जाने माने बिल्डर रधुनाथ दत्ता (६८) की बेटियां हैं). तीनों अजीत, अमर, व अमित से प्रेम करती हैं। एक दिन आयुष (२९ - रघुनाथ दत्ता की कंपनी के एक नौकर) से दत्ता साहेब को पता चलता है कि अनिता, अमृता व अंकिता मोहन बाबु के बेटों से प्रेम करती हैं।
दत्ता साहेब खिलाफत नहीं करते हैं, क्योंकि मोहन बाबु उनके बचपन के साथी हैं। दत्ता साहेब दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने के लिए अपनी बेटियों के रिश्ता ले कर मोहन बाबु के घर जाते हैं। मोहन बाबु हंसी खुशी से यह रिश्ता को स्वीकार करते हैं। साथ ही जल्द ही सभी को विवाह के बंधन में बांध भी देते हैं। मोहन बाबु के घर की स्थिती मध्य रहने के कारण, दत्ता साहेब अपने तीनों दमादों को अपनी कंपनी के पार्टनर बना लेता है।
अनिता, अमृता, अंकिता कुछ दिन तक सास ससूर की सेवा अपने तन मन से करती हैं। मगर इन तीनों बहनोंं का छोटे से घर में दम घुटता है। वे सब अपने पापा के अलिशान बंगले में जीवन यापन करना चाहती हैं। इसलिए एक दिन सभी बहनें एक मत बनाती हैं।
अपने मत के अनुसार सभी बहनें अपने अपने पति के समक्ष समस्या बयान करती हैं, और कहती हैं कि जब तक हम यहाँ एक अच्छा घर न बना लें, तब तक हम क्यों न पापा के अलिशान बंगले में रहें? पत्नियों का विचार पतियों को भा जाता है। सभी भाई, अपने माता पिता के सामने पत्नियों की प्रस्ताव को रखता है। मोहन बाबु व पार्वती अपने बेटों की राय से सहमत नहीं हैं।
फिर भी दिल पर पत्थर रख कर इजाजत दे देते हैं। फिर वे सब अपने अपने समान पैक कर ससूर जी की हवेली में चले जाते हैं।
शहर की चमक धमक व मौज मस्ती में सभी इतने लीन हो जाते हैं कि यह भूल ही जाते हैं कि घर में बूढे माँ बाप भी हैं। दत्ता साहेब को अपने बिजनेस से इतना फुर्सत कहाँ कि इन सभी को समझाएं। वह हमेशा कार में ही सफर करते हैं। उसी सफर में एक दिन सड़क दुर्घटना में दुनिया से अलविदा हो जाते हैं।
अब पुरी कंपनी का कार्यभार अजीत, अमर व अमित पर पड़ जाता है।
मोहन व पार्वती अपने बेटों के ग़म में रात दिन आँसूओं को गले लगा कर जी रहे होते हैं। एक दिन अचानक मोहन बाबू के सीने में तेज दर्द होता है। उसी दर्द से उनकी सांसें थम जाती हैं। पार्वती, पिता के अंतिम मुंह देखने के लिए अपने बेटों को खबर भिजवाती हैं, मगर तीन बेटों में से कोई बेटा नहीं आता है। अंतिम क्षण में पार्वती मोहल्लेवालों की सहायता से मोहन बाबू का दाह संस्कार कर देती है। आँसूओं से रात गुजारने के बाद सुबह ही अपने बेटों से मिलने के लिए दत्ता की हवेली में पहुंचती है। पार्वती को पहुंचना उस हवेली में अनिता अमृता व अंकिता को अच्छा नहीं लगता है। पार्वती हवेली के एक कोने में बैठ कर अपने बेटों की प्रतीक्षा करती है। अचानक पार्वती की नजर रघुनाथ दत्ता की तस्वीर पर पड़ती है।
उस तस्वीर पे फूल की माला टंगी है। वह समझ जाती है समधी साहेब अब इस दुनिया मे नहीं रहे।
शाम के समय अजित, अमर, अमित घर पहुंचता है। माँ को देखते ही तीनों बेटे अपनी नजरें चुराने लगते हैं। पार्वती समझ जाती है कि, अजीत, अमर, अमित अब मेरा बेटा कहाँ है? ए सभी तो किसी और के हो गये हैं। वह चुपचाप वहाँ से चल पड़ती है।
सुरज ढलने को है। वह तो ग़म की बोझ उठाए जा रही है।
(क्रमशः )... (to be continued!)
- इतने बड़े शहर में माँ कहाँ जाएगी?
- शहर के चकाचौंध कर देने वाली सड़क उस माँ को कहाँ ले जाएगी? उस माँ को कुछ पता नहीं।
- आगे समय कौन सी करवट लेगा?
लेखक: प्रद्युम्न अमित
अपडेट: 21 जुलाई 2023, 12:17
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