दृश्य-01
एक गाँव का दृश्य, एक अच्छे पक्के मकान के सामने कुर्सी पर लगभग साठ साल के उम्र का आदमी बैठा मोबाइल चला रहा है। घर के सामने से गाँव का रास्ता है। रास्ते के उस पार ठीक सामने एक खंडहर नुमा मकान है। लगता है, उस मकान में बहुत दिनों से कोई नहीं रहता है... तभी उस रास्ते से होकर कुर्सी पर बैठे आदमी से भी ज्यादा उम्र का एक आदमी छड़ी लिए आता है।
कुर्सी पर बैठा आदमी- (खड़ा होकर) काका गोड़ लागत बानी,आईं बईठीं।
आगन्तुक- आनन्द रह ए सुरेश बाबू। तुंहके देखले पर हमके तुहरे दादा पंडित काका क धियान आ जाला। तूं एकदम उनहीं अईसन लउकत बाटs।
सुरेश (अब हम उसे सुरेश ही कहेंगे)- अऊर सुनावs काका, कहाँ सबेरे सबेरे जात हवs?
आगन्तुक- तनी टहरे निकलल रहनी हं।
(उसी समय घर में से एक सात आठ साल की लड़की और एक उससे छोटा पांच साल का लड़का बाहर निकल कर आते हैं)
लड़की सुरेश से- दादा दादा हमनी के साथे खेलीं, हमहन क बोर होते बानी जां।
सुरेश- खेलवना से खेलs लोगन, हम केहू से बात करत बानी।
लड़का- ना ना हमहन क सब खेलवना बंगलोर में बाटे, हमरे साथे खेले क पड़ी।
आगन्तुक सुरेश से- कहिया क आईल बानs स तुहार ई खेलवना? हम चलत बानी तूं खेल इनहन के साथे।
सुरेश- एक हफ्ता हो गयील काका, बेटा, पतोहि, पोती, पोता के आ गयीले से घर भरि गयील बाटे। अगिला हफ्ता में वापस जाई लोग। हमहुँ साथे जात बानी अबकी।
आगन्तुक- जा बाबू अब ईहां के बा तुहार, ए गो रोटी बनवईया ले ना बा।
(आगन्तुक अपनी छड़ी ठुक ठुक करते हुए चला जाता है)
सुरेश पोती पोते से- राखी, रोहन बताव लोगन कवन खेल होई?
राखी - रोहन- छुप्पम-छुपाई।
सुरेश- ठीक बा शुरू करs लोगन।
राखी- अक्कड़ बक्कड़ बम्बई बोल, अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लागल धागा, चोर निकलि के भागा। दादा आप चोर हो गयीनी।
(सुरेश अपनी आंख बंद कर एक, दो, तीन कर दस तक की गिनती गिनता है। रोहन उसकी कुर्सी के पीछे छिपता है, राखी उस पार के खंडहर मकान में छिप जाती है। रोहन सुरेश को राखी के छिपने का स्थान बताता है। सुरेश दौड़ कर खंडहर में जाकर राखी को गोद मे उठाकर लाता है।)
सुरेश- तूं ओ खंडहर मे काहें गयीलू ह! ऊहां सांप बिच्छी रहेला! काटि देई तब का होई। अब कब्बो ऊहां मति जईह$।
राखी- दादा ऊ केकर घर हवे? ऊहां सांप बिच्छी काहें रहेला?
सुरेश- तुंहके ए बात से का मतलब, चलs खेलि खेलल जां।
राखी- नाहीं हमके बताव।
सुरेश- बिट्टो बुआ क हवे।
राखी- बिट्टो बुआ कहाँ चलि गयीली?
सुरेश- कहीं बुड़ि धंसि के मरि गयीली। चलs जा लोगन अपने महतारी के लग्गे, हमके परेशान जनि कर लोगन।
(सुरेश एक बार फिर बिट्टो बुआ कहकर सोच में डूब जाते हैं। कहानी फ्लैश बैक चली जाती है)
दृश्य-02
(शाम के समय गाँव की पंचायत बैठी है। वहीं एक पेड़ के साथ एक नवयुवक को रस्सी से बांधकर रखा गया है। एक पंद्रह सोलह साल की लड़की और उसके माँ बाप सिर झुकाये रो रहे हैं)
पंचायत प्रधान - सुदर्शन बिट्टो के इज्जत लुट लेते संवेदनशील, उनके बिट्टो से बिआह करे के परी।
बिट्टो- नाहीं परधान चाचा हम सुदर्शन के राखी बान्हेनी ऊ हमार भाई हंवे। हमरे बरबादी में इनकर कवनो हाथ ना बा। इनके छोड़ि दिहल जां। हम अपने आप के अपने पाप के साथे मिटा देब।
पंचायत प्रधान बिट्टो से- तब तूं अपराधी क नाम बतावs नाहीं त तुंहके सुदर्शन से बिआह करे के पड़ी... ईहे तुहार सजा बाटे।
बिट्टो- बरबाद करे वाला के नाम बतवले से हमार कवनो फायदा ना होई, उल्टा हमरे माई बाबू के जिनगी खतरा में पड़ि जाई।
पंचायत प्रधान- बिट्टो पंचायत के भरमावत बाटी, बिहने दुपहरिया क गाँव के मंदिर में बिट्टो आ सुदर्शन क विवाह होई।
दृश्य 03
(सुबह के समय बिट्टो के घर में उसके माँ बाप रो रहे हैं, उसी समय एक आठ दस साल का लड़का आकर बिट्टो को खेलने के लिए पूछता है)
लड़का - बिट्टो बुआ कहाँ बाटी हमके उनके साथे खेले के बाटे। देखs हम नया नया गेना ले आईल बानी।
बिट्टो की माँ (रोते हुए) - सुरेश बचवा तूं घरे जा, तुहार बिट्टो बुआ बुड़ि धंसि के मरि गयीली। सुदर्शना ओकरे माथे पर करिखा पोति दिहलस। अब ऊ कब्बो तुमसे साथे ना खेलिहें।
दृश्य 04
(एक सजे धरे फ्लैट मे सुरेश के साथ उनके पोती पोते खेल रहे हैं। तभी सुरेश का बेटा राजेश बाहर से आता है)
राजेश- बाबूजी आप बाहर घूमे काहें नाहीं जाईलां?
सुरेश- का बताईं हो ईहां क बोली समझ मे नाहीं आवत बाटे। सभे किड़बिड किड़बिड कन्नड़ बोलत बाटे।
राजेश (हंसकर) - जब जाईब बोलब सूनब त समझ में आवे लागी।
सुरेश- ठीक बा।
दृश्य 05
एक जलपान गृह में सुरेश प्रवेश करता है। जलपानगृह के काउन्टर पर एक पैंसठ- सत्तर साल की महिला बैठी है। वह ग्राहकों से कन्नड़ और अंग्रेज़ी में बात कर रही है। सुरेश जलपान गृह में बिक रहे व्यंजन पर देखकर लिट्टी चोखा की तरफ इसारा करता है।
औरत- का चाहीं लिट्टी चोखा?
सुरेश (चौक कर देखते हुए) - हं हं लिट्टी चोखा।
औरत- जा बाबू कुर्सी पर बईठs, गरम करवा के भेजत बानी।
(लिट्टी चोखा खाते हुए सुरेश बार बार उस औरत की तरफ देख रहा है, वह औरत भी उसकी तरफ ऐसे देख रही है जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो। खाना खाकर सुरेश काउन्टर पर पहुँचता है)
सुरेश- कितना रुपया हुआ?
औरत (भोजपुरी बोली में) - घर के लोगन से पैसा ना लेनी हम। ओईसे भोजपुरी भुला गयीलs का ?
सुरेश (एक दम से चौक कर)-आप कैसे जानती हैं कि मैं भोजपुरी भाषा क्षेत्र का हूँ?
औरत- हमरे त बुझात बा कि तोहार नाम सुरेश हवे। तूं मोहन तिवारी क बेटा हव, तोहरे दादा क नाम पंडित तिवारी हवे।
सुरेश- आ आप कौन, नाहीं रऊरा के हंई आपन परिचय बताईं?
औरत- आजु नाहीं, बिहने सब बताईब। सुरेश बाबू बिहने जरूर अईहs। कुछु अउर लोगन से तुंहके हम मिलाईब। खाना हमरे साथे खाए के बाटे। हम तोहार इंतजार करब।
... ...
(क्रमशः )... (to be continued!)
- वह औरत कौन थी?
- वह सुरेश को कैसे जानती थी?
- उस औरत और सुरेश में क्या रिश्ता था?
- सुरेश उस औरत को क्यों नहीं जानता था, जबकि वह उसे अच्छी तरह जानती थी?
- वह औरत किन लोगों से सुरेश को मिलाएगी?
लेखक: प्रेम नारायण तिवारी
अपडेट: 26 जुलाई 2023, 16:31
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